Wednesday, July 8, 2020

Notes for MPPSC MAINS Pepar-1 (Part-@) History unit-3

notes for MPPSC MAINS Pepar-1  

Watch video 
https://m.youtube.com/watch?v=iIjfjVXFBp0

>>>>>>>>>go down 

History unit-3    

 Pepar-1 HISTORY{ इतिहास} 

कुछ प्रारंभिक कृषक आंदोलन–
नील आंदोलन
    नील आंदोलन की शुरुआत बंगाल में नदियां जिले के गोविंदपुर गांव में किसानों के द्वारा हुआ। दिगंबर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में किसानों ने विद्रोह करके इस आंदोलन की शुरुआत की।
पृष्ठभूमि
    यूरोपीय बाजार के मांग की पूर्ति के लिए नील उत्पादकों ने किसानों को नील की खेती के लिए बाध्य किया। जिस उपजाऊ जमीन पर चावल की अच्छी खेती हो सकती थी ,उस पर किसानों की निरक्षरता का लाभ उठाकर झूठे करार द्वारा नील की खेती करायी जाती थी। करार के समय किसानों को मामूली रकम अग्रिम के रूप में दी जाती थी। यदि किसान अग्रिम वापस करके भी शोषण से मुक्ति का प्रयास करता था तो उसे ऐसा नही करने दिया जाता था। इसी के विरोध में किसानों ने विद्रोह किया।
विद्रोह का प्रभाव
  • सरकार ने विद्रोह का बलपूर्वक दमन शुरू कर दिया।
  • किसानों ने जमींदारों को लगान अदा करना बंद कर दिया।
  • बंगाल के बुद्धिजीवी खुल कर किसानों के पक्ष में सामने आए। जैसे हरिश्चन्द्र मुख़र्जी के पत्र ‘हिन्दू पैट्रियट’ ने किसानों का पूर्ण समर्थन किया। दीनबंधु मित्र ने ‘नील दर्पण’ के द्वारा गरीब किसान के दयनीय स्थिति का वर्णन किया आदि।
  • सरकार ने नील उत्पादन की समस्यायों पर सुझाव देने के लिए नील आयोग का गठन किया। इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने एक अधिसूचना जारी की ,जिसमे किसानों को यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें नील उत्पादन के लिए विवश नही किया जाएगा तथा सभी सम्बंधित विवाद को संवैधानिक तरीके से हल किया जाएगा।
पबना विद्रोह
  • बंगाल में ज़मींदारों के द्वारा किसानों पर क़ानूनी सीमा से बहुत अधिक करारोपण किया जाता था और मनमानी कारगुजारियां बड़े पैमाने पर किया जाता था ।इसके विरोध में 1873 -76 के बीच में किसान आंदोलन हुआ जिसे पबना विद्रोह के नाम से जाना जाता है।
  • पबना जिले के यूसुफशाही परगने में 1873 में किसान संघ कि स्थापना कि गई।इस संघ के अधीन किसान संगठित हुए और उन्होंने लगान हड़ताल कर दी और बढ़ी हुई दर पर लगान देने से मना कर दिया। किसानों कि यह लड़ाई मुख्यतः क़ानूनी मोर्चे पर ही लड़ी गई थी।
  • सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , आनंद मोहन बोस और द्वारका नाथ गांगुली ने इंडियन एसोसिएशन के मंच से आंदोलनकारियों की मांग का समर्थन किया।
दक्कन विद्रोह 1875
  • पश्चिमी भारत के दक्कन क्षेत्र में प्रारम्भ इस विरोध का मुख्य कारण रैयतवाड़ी बंदोबस्त के अन्तर्गत किसानों पर आरोपित किए गए भारी कर थे।इन क्षेत्रो में भी किसान करो के भारी बोझ से दबे थे तथा महाजनों के कुचक्र में फंसने की विवश थे।
  • 1864 में अमेरिकी गृह युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद कपास की कीमत में भारी गिरावट आई , जिससे महाराष्ट्र के किसान बुरी तरह प्रभावित हुए ,और महाजनों के ऋण का दवाब इनपर बढ़ता चला गया।
  • इस आंदोलन के अन्तर्गत किसानों ने महाजनों का सामूहिक बहिष्कार प्रारम्भ किया।
  • इस आंदोलन के अन्तर्गत किसानों ने महाजनों की दुकानों से खरीदारी करने तथा उनके खेतों में मज़दूरी करने से इंकार कर दिया। नाइयों , धोबियों और चर्मकारों ने भी महाजनों की किसी प्रकार की सेवा करने से इंकार कर दिया। धीरे धीरे यह सामाजिक बहिष्कार कृषि दंगो में परिवर्तित हो गया जिसके फलस्वरूप किसानों ने महाजनों और सूदखोरों के घरों पर हमले किए और ऋण संबंधी कागजात को लुट लिए गए और जला दिए गए।
दुर्बलताएं
  • इन आंदोलनकारियों में उपनिवेशवाद के चरित्र को समझने का आभाव था।
  • इस समय के किसानों में नई विचारधारा का आभाव था तथा उनके आंदोलन में सामाजिक , राजनितिक व आर्थिक कार्यक्रम सम्मिलित नही किए जाते थे।
  • इन संघर्षों का स्वरुप उग्रवादी था।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण का आभाव था 
कुछ महत्वपूर्ण किसान आंदोलन—-
किसान सभा आंदोलन
  • होमरूल लीग की गतिविधियों के कारण उत्तर प्रदेश में किसान सभाओं का गठन किया गया। फरवरी 1918 में गौरीशंकर मिश्र ,इंद्रा नारायण द्विवेदी तथा मदन मोहन मालवीय ने उत्तर प्रदेश किसान सभा का गठन किया। इनसे जुड़े कुछ और प्रमुख नेता थे -झिंगुरी सिंह , दुर्गापाल सिंह ,बाबा रामचंद्र , जवाहर लाल नेहरू आदि |इसकी लगभग 500 शाखाएं खोली गई ।
  • राष्ट्रवादी नेताओं में मतभेद के कारण अक्टूबर 1920 में अवध किसान सभा का गठन किया गया। अवध किसान सभा ने किसानों को बेदखल जमीन न जोतने और बेगार न करने की अपील की।
एका आंदोलन
    1921 में उत्तर प्रदेश के उत्तरी जिलों हरदोई ,बहराइच तथा सीतापुर में किसान एकजुट होकर आंदोलन पर उतर आए।
    इस बार आंदोलन के निम्न कारण थे —
  • उच्च लगान दर।
  • राजस्व वसूली में जमींदारों के द्वारा अपने गई दमनकारी नीतियां।
  • बेगार की प्रथा।
  • इस एका आंदोलन में किसानों को प्रतीकात्मक धार्मिक रीति रिवाज़ों का पालन करने का निर्देश दिया जाता था।
    इस आंदोलन का नेतृत्व निचले तबके के किसानों – मदारी पासी आदि ने किया।
मोपला विद्रोह
    मोपला केरल के मालाबार तट के मुस्लिम किसान थे , जहाँ जमींदारी के अधिकार मुख्यतः हिंदुओं के हाथों में थी।
    विद्रोह के मुख्य कारण थे–
  • लगान की उच्च दरे।
  • नजराना एवम अन्य दमनकारी तरीके।
बारदोली सत्याग्रह —
    1926 में गुजरात के सूरत में स्थानीय प्रशासन ने भू – राजस्व की दरों में 30 % वृद्धि की घोषणा की। कांग्रेसी नेताओं व स्थानीय लोगों ने इसका तीव्र विरोध किया। विरोध के उपरांत सरकार ने समस्या के समाधान हेतु बारदोली जांच आयोग का गठन किया। आयोग ने अपने रिपोर्ट में कहा कि भू राजस्व के दरों में की गई वृद्धि अन्यायपूर्ण व अनुचित है।
    प्रमुख बिंदु
  • फरवरी 1926 में बारदोली की महिलाओं ने बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि से विभूषित किया।
  • आंदोलन को संगठित करने के लिए बारदोली सत्याग्रह पत्रिका का प्रकाशन किया गया।
  • आंदोलन के समर्थन में के एम मुंशी तथा लालजी नारंजी ने बम्बई विधानपरिषद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
  • बम्बई में रेलवे हड़ताल का आयोजन किया गया।
  • सरकार ने ब्लूमफील्ड व मैक्सवेल के नेतृत्व में समिति बनाई ,जिन्होंने भू राजस्व को घटाकर 6.03% कर दिया।
अखिल भारतीय किसान कांग्रेस सभा
    इस सभा की स्थापना 1936 में लखनऊ में की गई। स्वामी सहजानंद सरस्वती इस सभा के अध्यक्ष तथा एन जी रंग सचिव चुने गए। इस सभा ने किसान घोषणा पत्र जारी किया तथा इंदु लाल याज्ञीक के निर्देशन में एक पत्र का प्रकाशन किया गया।
तेभागा आंदोलन
    यह आंदोलन बंगाल के सबसे प्रमुख कृषक आंदोलनों में से एक था। इस आंदोलन में मांग की गई थी की फसल का दो तिहाई हिस्सा किसानों को दिया जाए। इस आंदोलन में बंगाल किसान सभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह आंदोलन बटाईदारों के द्वारा जोतदारों के विरुद्ध चलाया गया था। बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों –मुफ्फर अहमद ,सुनील सेन तथा मोनी सिंह ने इस आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई।

कृषक आंदोलन 


१. नील आंदोलन 


आंदोलन 1859-60
-किसानो की अपनी आपिक मांगी हेतु छिया गया नील विद्रोह सर्वप्रथमपा प्पो कि बंगाल से नादिया जिला तारेम तुआ किसानो को नील की खेती हेतु वाध्य किया। । जाता था नील उत्पादन अधिकतम यूरोपीय पे
नील उत्पादक किसानो को एक मामूली खीरकमा देकर अग्रिम करारनामा लिखवा लेते पे किंत नील के | दाम बाजार में प्रचलित दामो से काफी कम होते घेशले ही ददनी प्रथा कला गया।
किसानो ने कर देना बंद कर दिया तथा किसानो फे, एकमट प्रतिरोध फो नील उत्पादक सहनना कर पाये जिससे उन्हें कारखाने बंद करने पड़े। इस तरह 1860 मे नील खेती पूर्णतः बंद हो गई। हिन्दुपेट्रियार |
के संपादक हरिश्चन्द्र मुखर्जी तथा दीनबंधु ने अपने नाटक नीलदर्पण में इसका उल्लेख किया ₹ हसकी जाय हेत, सर सीटोन कार की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय नील आयोग का गठन किया जितने 1860में अपनी रिपोर्ट में
ला भील रेग्यतो का शोषण हैं उन्हें अब नीमखेतीत वाध्य नही किया जायेगा।
२.-पबना आंदोलन 

३. दक्कन आंदोलन 

४. मलबार का भोपाल बिद्रोह 

५।  सयुक्त प्रान्त का किशन आंदोलन 

                           यदि आपको इन सब का pdf चाहिए तो नीचे दिए लिंक या logo पर click  करे  और download करे। . 


> आदिवासी विद्रोह के असफलता के कारण) -

आदिवासियो ने बनविदोहोली पर्पयोपना नहीं बनाईची न ही छपमे समस्त प्रमाति के लोगो का एहयोग लिमाजा सका, कास्तविक वास्तविकता में इन्हें अपना उदेश्य ज्ञात नही था जिसे प्राप्त करने देत ये एकजुट हो सके। आदिवासियो का योग्य नेतृत्वकर्ता नहीं मिल पाप यहा सिद,कान्त विश्वामुण्डा आदि

> भारतीय पुनर्जागरण
भारत मे ,धार्मिक एवं सामाजिक पुनमा | 19 की पदो माना गया छूष पाय ईस्ट इंडिया संपनी द्वारा दी प्पारही पाश्चात्य शिक्षा
A पे आधनिक युता वर्ग चिंतन शील हा ठातघा तरण व वृद्ध भी इस विषय पर वाचने तैयार हो गये कि मारत किष दिशा से
 > आर्य समाज


 यदि आपको इन सब का pdf चाहिए तो नीचे दिए लिंक या logo पर click  करे  और download करे। . 



Mppsc  mains  exam  pepar-1  History notes 

Unit-3 point-1 

2 comments:

SSC Selection Post Recruitment 2023 Apply Online for 5369 Post 2023

Government of India Ministry of Personnel, Public Grievances & Pensions, Department of Personnel & Training Staff Selection Commi...